Tusu Mela | Tusu Festival | Tusu Parab | Tusu Puja | Tusu Geet
टुसू परब झारखण्ड के बड़े त्योहारों में से एक है। एक मात्र ऐसा त्यौहार जिसकी धूम एक माह तक रहती है। अगहन पूर्णिमा से शुरू होकर पूस मास की पूर्णिमा तक Tusu Parab चलता है , लेकिन अब यह त्यौहार इतना प्रसिद्द हो गया है की 15 फरवरी के घूरती सती घाट तक Tusu Mela आयोजित होती है।
पूर्व में Tusu Mela गांव का मुख्य त्यौहार हुआ करता था लेकिन अब शहर में भी बड़ी धूम धाम से Tusu Mela मनाया जाने लगा है । धनबाद और जमशेदपुर का विख्यात Tusu Mela “डहरे टुसु ” में लाखों लोगों का हुजूम यह भीड़ दिखाता है की झारखण्ड में टुसु के प्रति बड़े बूढ़ों से लेकर नौजवानों तक कितनी दिवानगी है।
टुसू पर्व कहाँ मनाया जाता है ?
यह त्यौहार झारखण्ड सहित इससे सटे बंगाल के पुरुलिया , मिदनापुर और बांकुड़ा जिला इसके अलावे उड़ीसा के कई जिला बारीपदा , क्योंझर, मयूरभंज इलाकों में तथा असम राज्य के कुछ इलाकों में धूमधाम से मनाया जाता है। टुसु परब को मकर परब और पूस परब के नाम से भी जाना जाता है।
Tusu Festival | Tusu Parab की तैयारी कब से और कैसी होती है ?
यों तो Tusu Festival | Tusu Parab का क्रेज इतना रहता है कि इसकी तैयारी और इन्तजार लोग साल भर से करते है लेकिन पारम्परिक दृष्टि से अगहन मास से टुसू परब शुरू हो जाती है। देहात में गाय- बैल चराते वक़्त टुसू गीतों की रचना और गीत गाने की प्रैक्टिस करते है। महिलाएं बच्चे बूढ़े निकट बाजार से नए वस्त्र खरीदकर रखते है। इस त्यौहार में परिवार के सभी लोगों के लिए नये कपड़े लेने का रिवाज है। रात को कई गाँवों में नाचते गाते टुसू को घुमाया जाता है, गीत :-
1.उपोरे पाटा तअले पाटा,ताई बसेछे दारअगा । छाड़ दारअगा रास्ता छाड़अ,टुसु जाछे कईलकाता।।
2.एक सड़अपे दूई सड़अपे,तीन सड़अपे लक चोले। हामदेर टुसु एकला चोले,बिन बातासे गा डोले।।
3.टुसू गीते के कोरे माना , माना कोइरले रे जोरिबाना।
Tusu Mela-Tusu Festival-Tusu Parab-Tusu Puja में ढेकी का महत्व
जब बात हो Tusu Parab की तब सबसे महत्वपूर्ण ढेकी है। ढेकी से कूटा हुआ चावल की आटा / चुनी / गुड़ी के बिना टुसू मेला फीका है। सभी प्रकार की पारम्परिक लज़ीज खाद्य जैसे – खापरा पीठा, गुड़ पीठा, मसाला पीठा, चारपा , छिलका, पड़ाल पीठा ढेकी से तैयार चावल की आटा से ही बनती है।
खापरा पीठा
खापरा पीठा की सबसे बड़ी खासियत है की ये बिना तेल मसाला के बनाई जाती है। स्वास्थ्य वर्धक ये पीठा खाने में बेहद स्वादिष्ट होती है। टुसू परब में ये मांस झोर के साथ खाने की प्रचलन है। कम खर्च में ज्यादा गुणकारी और स्वादिष्ट होने के कारण इससे राजकीय खाद्य का दर्जा की मांग की जाती रही है।
मसाला पीठा
मसाला पीठा कई तरीके से बनाई जाती है:-
- मसाला को चावल का गुड़ी में मिक्स करके
- चावल का गुड़ी में में कचु (टोटी)/पेचकी/ आलती को मिलाकर
गुड़ पीठा
गुड़ पीठा एक ऐसा नाम जिसमे नाम में लालच है। इसकी खासियत यह है कि इसको एक माह तक फ्रीज़ के बिना रख सकते है। इसको बनाने की दो सरल विधि है :-
- चावल का गुड़ी में गुड़ का घोल मिक्स करके पीठा बनाया जाता है इससे ” थापा पीठा ” कहते है।
- चावल का गुड़ी में गुड़ का घोल मिक्स करके तरल बनाया जाता है। इससे जो पीठा बनती है उससे “गहरौआ पीठा ” कहते है।
चारपा
यों तो चारपा पीठा ” राजासाला त्यौहार ” से प्रारम्भ होती है। उस वक़्त सिम्बी चारपा खाने का रिवाज है। मगर Tusu Parab में चारपा न खाए तो क्या खाये? इससे पेट भर जाता है लेकिन मन नहीं भरता है। Tusu Festival में मांस चारपा बहुत लोकप्रिय खाद्य वस्तु है। चावल का चुनि ( गुड़ी) से भी मांस का फ्लेवर और टेस्ट आता है। इससे बनाना आसान है। चावल का चुनि ( गुड़ी) में फ्राई किया हुआ मांस (भूंजल मांस ) को मिक्स करके रोटी वाला तावा में थाप दिया जाता है।
Tusu Parab की विधि विधान :-
अघन सक्रांति के दिन कुंवारी कन्याओं द्वारा टुसु की स्थापना की जाती है।जिस स्थान पर स्थापना की जाती है उस जगह पर प्रत्येक दिन कुंवारी कन्याओं के समूहों द्वारा गीत गाया जाता है, गीत :-
- आमरा जे मां टुसु थापी,अघन सक्राइते गो।
अबला बाछुरेर गबर,लबन चाउरेर गुड़ी गो।।
तेल दिलाम सलिता दिलाम,दिलाम सरगेर बाती गो।
सकल देवता संझ्या लेव मां,लखी सरस्वती गो।।
गाइ आइल’ बाछुर आइल’,आइल’ भगवती गो।
संझ्या लिएं बाहिराइ टुसू, घरेर कुल’ बाती गो।।
2. आगहनअ सांकराईते टुसु,हाँसे हाँसे आबे गो।
पूसअ साँकराईते टुसु,काँदे काँदे जाबेगो ।।
Tusu Parab सिर्फ खाने और मेला का ही परब नहीं है अपितु इसमें कुछ विधि विधान है जैसे :-
प्रत्येक साल के-
- 11 जनवरी को आरवा चावल भिंगाना।
- 12 जनवरी को गुड़ी कूटा
( इसका टुसू गीत है – पूस परोबे मकर परोबे। गुड़ी कुटे मरअदे।।
- 13 जनवरी को बांउड़ी परब।
- 14 जनवरी को नहा धोकर गुड़ मुढ़ी , गुड़ पीठा खाने का।
- 15 जनवरी को आखाईन जातरा । इस दिन को बेहद शुभ माना जाता है।
टुसू की कहानी क्या है ?
Tusu Mela -Tusu Festival-Tusu Parab-Tusu Puja-Tusu Geet अचानक से इतना प्रचलित नहीं हुआ है। इसके पीछे पौराणिक कथाएँ जुड़ी हुई है। टूसू (TUSU ) का शाब्दिक अर्थ कुंवारी होता है।टुसूमनी जिससे टुसु कहा जाता है। वह एक गरीब किसान की अत्यंत सुंदर कन्या थी। वह इतनी सुन्दर थी कि उसकी सुंदरता का बखान राज्य के चारों और होने लगा। क्रूर राजा को उससे पाने की इच्छा जागृत हुई। येनकेन प्रकारेण कन्या को प्राप्त करने के लिए षड्यंत्र रचना प्रारंभ कर दिया। संयोग से उस वर्ष राज्य में भीषण अकाल पड़ा गया। राज्य की जनता लगान देने की स्थिति में नहीं थे।
राजा ने कृषि टैक्स को दोगुना करके क्रूरता शुरू कर दिया। जबरदस्ती टैक्स वसूली का आदेश दिया गया। टुसू ने कृषकों का संगठन बनाकर राजा के बीभत्स आदेश का विरोध करना शुरू किया। . राजा के बीर सैनिकों और किसानों के बीच युद्ध हुआ। कई किसान मारे गये। सैनिकों द्वारा टुसू को गिरप्तार करने ही वाले थे की टुसु ने जल-समाधि लेकर शहीद हो जाने का फैसला किया। देखते ही देखते टुसु उफनती नदी में छलांग लगा दी। टुसू की इसी अमर कुर्वानी की याद में प्रत्येक वर्ष Tusu Parab मनाया जाता है और टुसू की प्रतिमा बनाकर नाचते गाते बजाते नदी में विसर्जित करके श्रद्धा सुमन श्रद्धांजलि अर्पित किया जाता है।